इजराइल के प्रधानमंत्री बेजामिन नेतन्याहू राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के पुराने कर्जदार हैं। जब-जब नेतन्याहू राजनीतिक संकटों में घिरे, ट्रम्प ने कूटनीतिक तरीके से उनकी मदद की। खाड़ी देशों के नेता भी ट्रम्प के आभारी हैं, क्योंकि ट्रम्प ने उनके कट्टर दुश्मन ईरान पर हमेशा सख्ती की है। इन देशों को अमेरिका में आलोचना झेलने से बचाया। यही वजह है कि नेतन्याहू की तरह खाड़ी देश के नेता भी चाहते हैं कि ट्रम्प को नवंबर में दोबारा जीत हासिल हो।
व्हाइट हाउस में मंगलवार ( स्थानीय समयानुसार) को इजराइल और दो खाड़ी देशों संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और बहरीन के बीच नए समझौते पर हस्ताक्षर हुए। ट्रम्प इस समझौते को ऐतिहासिक बताकर प्रमोट कर रहे हैं। इसमें नेतन्याहू और खाड़ी देशों के चुनिंदा अफसर शामिल हुए। सभी ने ट्रम्प के लिए अपना समर्थन दिखाया।
समझौते से पूरी तरह शांति कायम नहीं होगी
वास्तविकता यह है कि समझौते से पूरी तरह शांति कायम नहीं होगी, जैसा कि ट्रम्प दावा करते हैं। इससे सिर्फ इजराइल और उन देशों ( बहरीन और यूएई) के बीच संबंध सामान्य होंगे। इन देशों के बीच लोग यात्रा कर सकेंगे और डिप्लोमैटिक संपर्क बढ़ेंगे। ये ऐसे देश हैं जिन्होंने कई सालों से एक दूसरे से लड़ाई नहीं लड़ी है। वास्तव में ये पहले ही एक दूसरे के साथी रहे हैं खासतौर पर ईरान के खिलाफ एकजुट रहे हैं।
समझौते को लेकर ट्रम्प के दावे
ट्रम्प कैंपेन के नए विज्ञापनों में दावा किया जा रहा है कि विदेश नीति पर राष्ट्रपति ट्रम्प के संदेशों से वे इस समझौते के लिए तैयार हुए हैं। ट्रम्प इनके बीच की सभी आपसी कड़वाहट और अनिश्चितताओं को दूर करके अस्त-व्यस्त मिडिल ईस्ट (पश्चिम एशिया) में सौहार्द बना रहे हैं।
ट्रम्प कैंपेन के फेसबुक विज्ञापन में पिछले हफ्ते बताया गया कि ट्रम्प ने मिडिल ईस्ट में शांति बनाने में उपलब्धि हासिल की है। इसके लिए उनका नाम नोबेल पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया गया है। इसमें भी नोबेल की स्पेलिंग गलत ही लिखी थी। हजारों लोग इसके लिए एंट्री भेजते हैं और कोई भी इसके लिए नॉमिनेट हो सकता है। नॉर्वे के दो राइट विंग के नेताओं ने इसके लिए ट्रम्प को नॉमिनेट किया था।
यह ट्रम्प का राजनीतिक एजेंडा:विशेषज्ञ
जेविश डेमोक्रेटिक काउंसिल ऑफ अमेरिका की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर हेली सोफी ने कहा- इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि यह सबकुछ चुनाव से बस 48 दिन पहले हो रहा है। इजराइल में हुए पिछले तीन चुनावों में डोनाल्ड ट्रम्प ने वहां के पीएम नेतन्याहू को मदद करने की कोशिश की। अब नेतन्याहू अपने देश में राजनीतिक संकट होने के बावजूद वॉशिंगटन आ रहे है। मिडिल ईस्ट में शांति वार्ता हाथ की सफाई की तरह है। यह मानना होगा कि यह ट्रम्प का राजनीतिक एजेंडा है। ट्रम्प की दिलचस्पी चुनाव में फायदे के लिए इसे इस्तेमाल करने की है।
‘खाड़ी देशों को बाइडेन के राष्ट्रपति बनने से डर’
तेल अवीव के इंस्टीट्यूट फॉर नेशनल सिक्योरिटी स्टडीज के सीनियर फैलो और इजराइल नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल के पूर्व प्रमुख योल गुजांस्की भी कमोबेश यही मानते हैं। योल ने कहा- वे देश चाहते हैं कि ट्रम्प सत्ता में बने रहें। वे बाइडेन के राष्ट्रपति बनने को लेकर चिंतित हैं। उन्हें डर है कि बाइडेन मानवाधिकार जैसे मुद्दों को लेकर उनपर सख्त और ईरान पर नरम हो सकते हैं। अगर बाइडेन आए तो ट्रम्प उन हथियारों की बिक्री पर भी रोक लगा सकते हैं जिन पर ट्रम्प को घमंड है।
ट्रम्प के ऑफिसर्स का क्या मानना है
इन सबके बीच ट्रम्प प्रशासन के ऑफिसर्स समझौते को चुनाव प्रचार के लिए इस्तेमाल की बात का खंडन करते हैं। वे कहते हैं कि आलोचक इजराइल और खाड़ी देशों को आपस में जोड़ने के लिए ट्रम्प को उनकी कड़ी डिप्लोमैटिक मेहनत का श्रेय नहीं देना चाहते। हालांकि ये ऑफिसर अब तक इस बात को लेकर निश्चित नहीं है कि अरब वर्ल्ड लंबे समय तक दुश्मन बताए गए इजराइल को पार्टनर के तौर पर अपनाने के लिए तैयार है या नहीं।
ऐस मौका कभी कभी मिलता है: कुशनर
समझौते में अहम भूमिका निभाने वाले ट्रम्प के दामाद और एडवाइजर जैरेड कुशनर ने कहा- इजराइल और बहरीन या इजराइल या यूएई के बीच कई बार बात हुई। ये बातचीत कई स्तरों पर हुईं। हमने दोनों पक्षों के बीच भरोसा बनाने की कोशिश की। इजराइल के साथ दो खाड़ी देशों के बीच समझौते पर उन्होंने कहा कि किसी शांति समझौते को देखना का मौका कभी-कभी ही होता है। इससे भी मुश्किल एक ही दिन में दो शांति समझौतों का अनुभव करना है।
ये है खाड़ी देशों के समझौते करने की वजहें
ट्रम्प के मिडिल ईस्ट के पार्टनर्स के लिए यह समझौते करने की वजहें हैं। उन्हें व्हाइट हाउस के साउथ लॉन में उन्हें 200 दूसरे मेहमानों के साथ इसमें शामिल होने का मौका मिलेगा। सऊदी अरब और यूएई यमन के सिविल वार में सैन्य दखल देने की वजह से अमेरिका छवि बिगड़ी है, इससे उसे सुधारने में मदद मिलेगी। सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान 2018 में जर्नलिस्ट जमाल खशोगी की हत्या के बाद अलग थलग पड़ गए हैं। यह उनके लिए भी मददगार होगा। ऐसा माना जा रहा है कि मोहम्मद बिन सलमान को निजी तौर पर समर्थन दे रहे हैं।
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