डोनाल्ड ट्रम्प जानते हैं कि वे चुनाव हार चुके हैं, अब वे सिर्फ हार का अंतर कम करने की कोशिश में जुटे हैं

डोनाल्ड ट्रम्प अब भी 2020 का राष्ट्रपति चुनाव जीत सकते हैं। इसके 10 या 15% चांस हैं। लेकिन, अगर ऐसा होता है तो इसका श्रेय उनकी बंटवारे की कोशिशों के जाएगा। इसके लिए मैंने पहले ही कॉलम लिखकर रख लिया है। क्योंकि, फिलहाल जो कुछ हम देख रहे हैं वो उससे साफ जाहिर होता है कि वो सत्ता में बने रहने के बजाए अब हार का अंतर कम करने की कोशिश कर रहे हैं।

2016 में भी यही किया था
शुरुआत उनके री-इलेक्शन मैसेजिंग से कर सकते हैं। 2016 में उन्होंने हिलेरी क्लिंटन के खिलाफ इसी तरह की बातें की थीं, जैसी अब कर रहे हैं। जैसे- डेमोक्रेट्स यानी हिलेरी ने खराब ट्रेड डील कीं, गलत युद्धों का समर्थन किया, अगर वे जीतीं तो कई और फैक्ट्रीज बंद हो जाएंगी, कई सैनिक मारे जाएंगे, गैर कानूनी तरीके से लोग अमेरिका में आएंगे वगैरह, वगैरह।

2020 में क्या हो रहा है
अब बात इस चुनाव यानी 2020 की कर लेते हैं। ट्रम्प का कैम्पेन दो अलग-अलग चीजों के बीच फंसा नजर आता है। पहले में पिछले कैम्पेन की झलक नजर आती है। जो बाइडेन को वे पुरानी और विफल सरकार का प्रतीक बता रहे हैं। इसमें वे वॉशिंगटन में उनके कार्यकाल के सभी 47 साल का हवाला देते हैं। ट्रम्प कहते हैं कि बाइडेन अमेरिका के तमाम हित चीन को बेच देंगे। इस दौरान बाइडेन के बेटे हंटर बाइडेन पर भी इल्जाम लगाए जाते हैं। उन्हें भी घसीटा जाता है।

दूसरी बात ट्रम्प ये कहते हैं कि डेमोक्रेट्स तो वास्तव में बर्नी सेंडर्स को उम्मीदवार बनाना चाहते थे। लेकिन, सेंडर्स की उम्र बाधा बन गई और कट्टरपंथी लेफ्ट वाले उन्हें ये मौका नहीं दे सके। कमला हैरिस पर भी निशाना साधा जाता है।

विरोधाभास साफ नजर आता है
अच्छा कैम्पेन तब होता जबकि ट्रम्प की इन दोनों दलीलों को ठीक से बुना जाता यानी उनमें बैलेंस होता। लेकिन, यहां उनकी बातों में विरोधाभास साफ नजर आता है। पुराने आरोपों को दोहराने और ऑनलाइन दुखड़ा रोने से दूसरों को वे मौका देते हैं। रेडियो और ट्विटर के जरिए यह साबित करने के कोशिश कर रहे हैं कि जैसे राष्ट्रपति का यही काम हो। चार साल बाद भी वे यही सोच रहे हैं कि जैसे वे चुनाव के बाद मीडिया में पहले की तरह नजर आएंगे।

सच्चाई कुछ और है...
लेकिन, ट्रम्प अपनी बात पहुंचाने में नाकाम रहे हैं, और ये साफ नजर आ रहा है। इस चुनाव में वोटर्स के सामने दो ही मुख्य मुद्दे हैं। महामारी और अर्थ व्यवस्था। ट्रम्प ने महामारी को कैसे हैंडल किया। ये साफ नजर आता है। इकोनॉमी के मामले में आंकड़े बेहतर हैं। कोरोनावायरस के पहले बेरोजगारी के आंकड़े क्या थे और इसके बाद जो इस महामारी से निपटने के लिए खर्च किया गया, उन्हें देखिए। इसका मतलब ये हुआ कि कैम्पेन में गिरावट आनी थी, और वो आई भी। हालात सुधारने के लिए राहत पैकेज दिए गए। यह दिखाने की कोशिश की गई कि महामारी से निपटने के लिए गंभीर प्रयास किए जा रहे हैं। देश से यह वादा भी किया गया कि रिलीफ फंड्स के जरिए वैक्सीन आएगी और 2021 में सब पहले जैसा यानी सामान्य हो जाएगा।

खुद भी संक्रमित हुए
ट्रम्प ने रिलीफ पैकेज पर महीनों तक चर्चा नहीं की। सियासी तौर पर यह कमजोरी साबित हुई। दिक्कतें तब और बढ़ गईं जब वे खुद कोविड-19 से संक्रमित हो गए। बाद में भी ये साबित करने की कोशिश हुई कि हम बहुत ज्यादा टेस्ट कर रहे हैं और हर्ड इम्युनिटी के करीब हैं। कुछ मुद्दे हैं। जैसे, लॉकडाउन का असर नहीं हुआ और इसे फिर से लागू नहीं किया जा सकता। स्कूलों को फिर खोल दिया जाए कि खतरा कम हो गया है, वायरस उतना घातक अब नहीं रहा, जितना पहले बताया जा रहा था। और अच्छे इलाज की वजह से मौतें कम होने लगी हैं।

अंदाजा गलत साबित हुआ
लेकिन, ये दलीलें गलत साबित हुईं। पहली बात कि हर्ड इम्युनिटी एक मूविंग टारगेट जैसी चीज है। यानी इसमें हालात के हिसाब से बदलाव होता रहता है। यूरोप इसका उदाहरण है। वहां सर्दियों में हालात खराब थे, गर्मियों में बेहतर हुए और अब फिर बिगड़ रहे हैं। बेल्जियम इसकी मिसाल है। ध्यान रखिए, अगर टेस्ट्स से ये साबित हो रहा है कि ज्यादातर केस हल्के लक्षणों वाले हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि वायरस से लोगों की मौत होना बंद हो गई है। यह अमेरिका और यूरोप दोनों जगह देखा जा सकता है। सितंबर में अस्पतालों में मरीज बढ़े। डेथ रेट थम गया है। अभी यह करीब 711 है। नवंबर तक इसके फिर बढ़ने का खतरा है।

री-ओपनिंग का फैसला गलत था
दो तिहाई अमेरिकी मानते हैं कि नवंबर में मतदान के वक्त वे कोरोनावायरस के बारे में जरूर सोचेंगे। ट्रम्प ने सर्दियों में री-ओपनिंग का फैसला करके गलती की। यूरोप में जो हालात अब सामने आ रहे हैं उससे साफ हो जाता है कि यह पूरे पश्चिम की दिक्कत है। लेकिन, यह भी सही है कि ट्रम्प जिस सच्चाई से इनकार कर रहे हैं, उसकी वजह से और ज्यादा अमेरिकी मारे जा सकते हैं। कुल मिलाकर उनका हर फैसला आखिर में उनकी सियासी हार की वजह बनेगा।



Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
Donald Trump Vs Joe Biden 2020 Presidential Campaign; Here's New York Times (NYT) Latest US Election Opinion


https://ift.tt/3ociBJv
https://ift.tt/2ThUvPn

If You have any doubt or query then you can contact us

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post